Wednesday, October 7, 2009

हर तरफ़ धुआं ही धुआं है..



तो हर तरफ़ लगी है मगर जब किसी स्कूल में लगती है तो सबसे पहले यही कहते हैं लोग कि उस समय हम टीचरों ने क्या किया। हमसे जमाना सब कुछ बन जाने की उम्मीद करता है।
त्वमेव टीचर, च स्वीपर त्वमेव,
त्वमेव देश के नींव बिल्डर च
फायर एक्स्तिनगीजर त्वमेव।
त्वमेव डाक्टर च नौकर त्वमेव
त्वमेव आटे में चोकर त्वमेव।
त्वमेव टूर ओपरेटर च
स्कूल बस का हेल्पर त्वमेव
त्वमेव बुक सेलर च
मिड डे मिल मनेजर त्वमेव।
त्वमेव माली च कुक त्वमेव,
त्वमेव गार्ड च बन्दूक त्वमेव।
त्वमेव भाट च भिश्ती त्वमेव
त्वमेव केवट च किश्ती त्वमेव।
त्वमेव ज्ञान कम्पोस्ट च
नॉलेज के गोबर त्वमेव
त्वमेव सेन्सस एनुमरेटर च
इलेक्सन में लेबर त्वमेव।
बिगड़ी मशीनरी के फीटर त्वमेव
त्वमेव सर्वम् मम टीचर त्वमेव ........
अरे आग तो आग है, हथेली से मसल के तो बुझेगी नहीं। आग बुझाने के सामान तो हों। चिल्लाने से और फूँक मारने से, बिजली की आग बुझती है क्या !!! हम सब कुछ बन सकते हैं, अब फायर फाइटर भी बन लेंगे मगर कुछ हथियार तो हों...
समाज को एक बार कम से कम उन शिक्षकों को धन्यवाद तो देना ही चाहिए जिन्होंने बच्चों को इस व्यवस्था की आग में झुलसने से बचा ही लिया।


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