Sunday, April 25, 2010

'विभूति' मातृश्री अवार्ड से सम्मानित.....




प्रिय दोस्तों,
आज का दिन हमारे लिये बहुत ही खुशी का दिन है। हम सभी के मित्र एवं पूरे शिक्षक समाज के साथ सहानुभूति रखने वाले विभूति भाई को पत्रकारिता के क्षेत्र में उत्कृष्ट काम करने के लिए 'मातृश्री अवार्ड' से सम्मानित किया गया जिसे गृह राज्य मंत्री श्री अजय माकन जी के कर कमलों द्वारा दिया गया। समारोह की अध्यक्षता दिल्ली के मेयर डॉ. कँवर सेन जी ने की।
सबसे पहले हम उन सभी चयनकर्ताओं को धन्यवाद देना चाहेंगे जिन्होंने पत्रकारिता जगत में एक "विभूति" को खोज निकाला।

विभूति भाई के बारे में हम केवल यही कहना चाहेंगे कि जब मीडिया का एक बड़ा वर्ग हम सभी सरकारी स्कूलों के शिक्षकों एवं शिक्षा जगत की केवल नकारात्मक छवि पेश करने में एक आनंद का अनुभव करता था तब उन्होंने हमारे पक्ष को भी गंभीरता से समझने की कोशिश की और हमारी आलोचनाओं के साथ साथ हमारी मजबूरियों और हमारे सकारात्मक पक्ष को भी समाज के सामने मजबूती से रखा।
आपकी इस पहल ने हमें मीडिया और समाज में स्वीकार्यता प्रदान की है और लोगों ने हमें फिर से समझने की कोशिश शुरू की है कि सरकारी स्कूलों की "दुर्गति" के लिये केवल मुट्ठी भर चमचे किस्म के भ्रष्ट शिक्षक जिम्मेदार हैं जो बरसों से एक स्कूल में जमे रहते हैं, खूब 'फर्लो' मारते हैं और प्रिंसिपल के साथ ग्रुप बनाकर, उसके साथ मिलकर फर्जी बिल बनाते हैं। साथ में केवल वे अधिकारी दोषी हैं जो इनको बचाते है। ये सभी मिलकर शिक्षा विभाग को लूट रहे हैं और ईमानदार शिक्षकों को कुंठित कर रहे हैं, उनको अपनी राजनीति का शिकार बना रहे हैं, उनपर धौंस मार रहे हैं।
हम आपके शुक्रगुजार हैं, विभूति भाई......आपने सच्ची पत्रकारिता की मिसाल पेश की है।

हमें पता है कि अक्सर 'जागरण' में 'सच' छपने के बाद 'सरकार' को कितना बुरा लगता था।
लेकिन अनेकों बार फ़ोन और मिन्नतें भी विभूति जी की कलम की धार को कुंद नहीं कर पाईं.....छपा वही जो छपना चाहिए था।

आप खूब उन्नति करें, आपको और भी बड़े बड़े सम्मान मिलें... हम डेल्टा से जुड़े उन सभी हजारों शिक्षकों की तरफ से जो इस देश के हर राज्य में हैं.....

दिल से बधाई देते है...
हमारी शुभकामनाएँ आपके साथ हैं।


"पोर पोर में है समाया हुआ,
जो दर्द मेरा,
एक खिंचाव के साथ,
रिसकर,
बहकर आने दो बाहर,
मेरी कलम की छोर से।
संवेदनाओं की पतंग,
विचारों के विशाल क्षितिज पर,
उड़ लेने दो,
बस दो चार पल ही सही,
बंधकर,
स्याही की डोर से".......
कृपया इस लिंक को क्लिक करें

Saturday, April 24, 2010

Chanakya at Kaikeyaraj Sabha

सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामयः, सर्वे भद्राणि पश्यन्तिः, मा कश्चिद् दुख्भागभ्वेद॥

प्रिय स्वजनों, आपने ही स्वजनों के हाथों सम्मानित होने में गौरव का अनुभव होता है, प्रसन्नता भी होती है। एक विष्णुगुप्त गौरवभूषित हो तो ना ही परिषद् न ही शिक्षक के लिये गौरव की बात हो सकती है। शिक्षक और परिषद् तो गौरवभूषित तब होगी जब यह राष्ट्र गौरवशाली होगा और यह राष्ट्र गौरवशाली तब होगा जब यह राष्ट्र अपने जीवन मूल्यों व परम्पराओं का निर्वाह करने में सफल और सक्षम होगा और यह राष्ट्र सफल और सक्षम तब होगा जब शिक्षक अपने उत्तरदायित्व का निर्वाह करने में सफल होगा और शिक्षक सफल तब कहा जाएगा जब वह प्रत्येक व्यक्ति में राष्ट्रीय चरित्र का निर्माण करने में सफल होगा। यदि व्यक्ति राष्ट्रभाव से शून्य है, राष्ट्रभाव से हीन है, अपनी राष्ट्रीयता के प्रति सजग नहीं है तो यह शिक्षक की असफलता है और हमारा अनुभव साक्षी है कि राष्ट्रीय चरित्र के अभाव में हमने अपने राष्ट्र को अपमानित होते देखा है। हमारा अनुभव है कि शस्त्र से पहले हम शास्त्र के अभाव से पराजित हुए हैं। हम शस्त्र और शास्त्र धारण करने वालों को राष्ट्रीयता का बोध नहीं करा पाए और व्यक्ति से पहले खंड-खंड हमारी राष्ट्रीयता हुई। शिक्षक इस राष्ट्र की राष्ट्रीयता व सामर्थ्य को जागृत करने में असफल रहा। यदि शिक्षक पराजय स्वीकार कर ले तो पराजय का वह भाव राष्ट्र के लिये घातक होगा। अतः वेद-वंदना के साथ साथ राष्ट्र-वंदना का स्वर भी दिशाओं में गूंजना आवश्यक है। आवश्यक है, व्यक्ति व व्यवस्था को आभास कराना कि यदि व्यक्ति की राष्ट्र की उपासना में आस्था नहीं रही तो उपासना के अन्य मार्ग भी संघर्ष-मुक्त नहीं रह पाएंगे। अतः व्यक्ति से व्यक्ति, व्यक्ति से समाज और समाज से राष्ट्र का एकीकरण आवश्यक है। अतः शीघ्र ही व्यक्ति, समाज और राष्ट्र को एक सूत्र में बांधना होगा और वह सूत्र राष्ट्रीयता ही हो सकती है। शिक्षक इस चुनौती को स्वीकार करे और शीघ्र ही राष्ट्र का नवनिर्माण करने के लिये सिद्ध हो। संभव है कि आपके मार्ग में बाधाएं आएँगी परन्तु शिक्षक को उनपर विजय पानी होगी और आवश्यकता पड़े तो शिक्षक शस्त्र उठाने में भी पीछे ना हटे। मैं स्वीकार करता हूँ शिक्षक का सामर्थ्य शास्त्र है परन्तु यदि मार्ग में शस्त्र बाधक हों और राष्ट्र-मार्ग के कंटक शस्त्र की ही भाषा समझते हों तो शिक्षक उन्हें अपने सामर्थ्य का परिचय अवश्य दे अन्यथा सामर्थ्यहीन शिक्षक अपने शास्त्रों की भी रक्षा नही कर पायेगा। संभव है कि इस राष्ट्र को एक सूत्र में बांधने के लिये शिक्षक को सत्ताओं से भी लड़ना पड़े परतु स्मरण रहे कि सत्ताओं से राष्ट्र महत्वपूर्ण है। राजनीतिक सत्ताओं के हितों से राष्ट्रीय हित महत्वपूर्ण है। अतः राष्ट्र की वेदी पर सत्ताओं की आहुति देनी पड़े तो भी शिक्षक संकोच ना करे। इतिहास साक्षी है, सत्ता और स्वार्थ की राजनीति ने इस राष्ट्र का अहित किया है। हमें अब सिर्फ इस राष्ट्र का विचार करना है। यदि शासन सहयोग दे तो ठीक है, अन्यथा शिक्षक अपने पूर्वजों के पुण्य और कीर्ति का स्मरण कर अपने उत्तरदायित्व का निर्वाह करने में सिद्ध हो, विजय निश्चित है। सप्त-सिन्धु की संस्कृति की विजय निश्चित है। विजय निश्चित है, इस राष्ट्र के जीवन मूल्यों की, विजय निश्चित है इस राष्ट्र की, आवश्यकता मात्र आवाहन की है......

Tuesday, April 13, 2010

No fee could be charged in Govt schools


The UPA Govt has implemented a historical Right To Education Act 2009 from 01/04/09 in the whole country.

This is another good legislation crafted, just like RTI Act 2005 issued by this Govt previously.

This move of Govt is admirable and we should welcome such nice RTE Act.

Yet, there are some provisions which to be rectified with mutual understandings but this is the time to welcome and not to oppose the welfare nature of this ACT.

We are thankful to the whole team of Ministers and Officers who formulated this RTE Act 2010.

The fees can't be collected in Govt schools under this act and its Section 3 (1) and (2) of RTE clearly states that

3.(1) Every child of the age of six to fourteen years shall have a right to free and compulsory education in a neighbourhood school till completion of elementary education.
(2) For the purpose of sub-section (1) , no child shall be liable to pay any kind of fee or charge or expenses which may prevent him or her from pursuing and completing the elementary education.

The Govt MUST reimburse the PWF and PTA fund to its schools. Charging money from students in any form by any name is COMPLETE violation of this RTE Act.

The Govt is looking alert for the welfare of its public but is it true that its functionaries chore in same tune, too?

Black sheeps in the system should be marked.

We urge Respected Minister to take steps immediately against the odd tunes.
Friends,
Today we have launched our campaign in favour of general public and it will be intensified with support of some NGO in coming future.

We are thankful to all our friends in Media for supporting us and we convey our heartiest gratitude to Dainik Jagran for publishing a nice report on this issue on today 13/04/2010.

Please click this link to read Internet edition of the news
http://in.jagran.yahoo.com/news/local/delhi/4_3_6331754.html

(Please double-click over the image of news paper to read in large fonts)

Monday, April 5, 2010

Can you feel the pain in this poem....






आज सुबह कक्षा 8 की एक लड़की, सपना, मेरे पास आयी. उसकी नन्ही सी हथेली में कागज़ का एक पन्ना था, तुड़ा-मुड़ा सा.


ईश्वर मुझको फेल न करना,
एक साल की जेल न करना

पास पड़ोसी बुरा कहेंगे,
संगी साथी दूर रहेंगे

ऐसा मुझसे खेल न करना,
ईश्वर मुझको फेल न करना

एक ही कक्षा में कैसे रहूंगी,
सब का ताना कैसे सहूंगी

वही किताबें वही कहानी,
होगी मुझको फिर दोहरानी

ऐसा मुझसे खेल न करना,
ईश्वर मुझको फेल न करना

अगर आप इस कविता के दर्द को समझ सकते हैं तो एक बार सोचियेगा...
किसी बच्चे को 'फेल' कहकर उसी क्लास में रोकना एक कोमल मन के लिये क्या होता है ?

(मदन मोहन तिवारी)