Monday, June 28, 2010

दंड के बदले पुरस्कार दे रही सरकार...




बिहार विधानसभा में जो हंगामा इन दिनों हुआ उसके पीछे केवल AC DC बिल का मामला था। अधिकारियों ने ट्रेजरी से पैसे एडवान्स के रूप में लिये मगर उपयोगिता सर्टिफिकेट नहीं दिए और ना ही बिल लगे। कुछ इसी तरह क़ी 'गलती' दिल्ली शिक्षा विभाग सहित अनेक विभागों में भी हुई है।

90 पुरुष और 38 वाईस-प्रिंसिपल शिक्षा विभाग, दिल्ली में पदोन्नत होकर प्रिंसिपल बनाये जा रहे हैं।
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इनमें से अनेक अपने अपने विद्यालयों में 'हेड' की हैसियत से काम करते रहे हैं। स्कूलों के विकास की जिम्मेदारी इनकी ही थी।
कुछ दिनों पहले 23 जून 2010 को कंट्रोलर ऑफ़ एकाउंट, दिल्ली ने एक कड़ा पत्र शिक्षा विभाग को लिखा कि इन 'हेड' के पास करीब 92 करोड़ रुपये (करीब एक अरब रुपये) एडवांस के रूप में पड़े हुए है और इन्होने इसे खर्च नहीं किया है। इस पर डाईरेक्टर ने भी सख्त निर्देश जारी किये कि इन एक अरब रुपयों को 'एडजस्ट' करके जुलाई के प्रथम सप्ताह में रिपोर्ट दें।
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इस बीच इन हेड में से अनेक का प्रिंसिपल के रूप में प्रोमोशन कर देने के लिये एक लिस्ट भी निकल गयी। 'बेचारों' ने रात दिन एक करके जो पैसे वर्ष भर में भी खर्च नहीं किया था, आनन फानन में 'एडजस्ट' कर दिया। बिल चिपक गए, एक अरब रुपये पंद्रह दिन में खर्च हो गए।
ये राशि बच्चों की यूनिफार्म, डेस्क, स्कोलरशिप, मुस्लिम तथा पिछड़े वर्ग के बच्चों के कल्याण योजनाओं की थी।
सालों भर गरीब बच्चे जमीं पर , कड़ाके की ठण्ड में भी फटी दरी पर बैठते रहे, पैबंद लगी शर्ट पैंट पहन कर स्कूल आते रहे मगर इनकी सुध लेने के नाम पर जिनको प्रतिमाह पचास-पचास हज़ार रुपये वेतन मिलता रहा, कान में तेल डाल कर सोये रहे।
वो भी उस गरीब देश में जहां ऐसे लोग भी हैं जिनको इतना पैसा सौ वर्ष की जिन्दगी में भी नसीब नहीं होता, जिस देश में आज भी गाँवों में दस रुपये कर्ज लेने के लिये लोग पैर पकड़ते हैं, गिड़गिड़ाते हैं....
ये प्रिंसिपल प्रतिवर्ष नई कारें किन पैसों से खरीद रहे है, दिल्ली के उपनगरों में फ्लैट, कोठियां खरीद रहे हैं, इसकी खोज खबर लेने वाला विभाग आखिर चुप क्यों है ???
क्या ये विभाग तब जागेंगे जब नक्सलवाद महानगरों में भी इन असंतुष्ट वंचित वर्गों को हथियार की भाषा पढ़ाने लगेगा.....
शायद तब लोकतंत्र पर विचार करने की भी हिम्मत नहीं बचेगी।
इस मामले की उच्च स्तरीय जांच होनी चाहिए कि केवल पंद्रह दिनों में ये एक अरब रुपये सचमुच कितनी ईमानदारी से खर्च किये या अगले वित्तीय वर्ष 2011-12 के लिये बचा कर रखे गए है।
इन वाईस प्रिंसिपलों ने समय पर काम पूरा नहीं किया, इनकी प्रशासनिक अक्षमता और भ्रष्टाचार की जांच करने, इनको दंड देने के बदले, पुरस्कार दे रही है सरकार....

इस जानकारी को अधिक से अधिक संगठनों, व्यक्तियों तक पहुँचाने में मीडिया ने अपनी जिम्मेदारी निभायी है। आप कृपया 'दैनिक जागरण' और 'अमर उजाला' 8 जुलाई 2010 के संस्करण में प्रकाशित समाचारों को पढ़ें...

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