Monday, April 5, 2010
Can you feel the pain in this poem....
आज सुबह कक्षा 8 की एक लड़की, सपना, मेरे पास आयी. उसकी नन्ही सी हथेली में कागज़ का एक पन्ना था, तुड़ा-मुड़ा सा.
ईश्वर मुझको फेल न करना,
एक साल की जेल न करना
पास पड़ोसी बुरा कहेंगे,
संगी साथी दूर रहेंगे
ऐसा मुझसे खेल न करना,
ईश्वर मुझको फेल न करना
एक ही कक्षा में कैसे रहूंगी,
सब का ताना कैसे सहूंगी
वही किताबें वही कहानी,
होगी मुझको फिर दोहरानी
ऐसा मुझसे खेल न करना,
ईश्वर मुझको फेल न करना
अगर आप इस कविता के दर्द को समझ सकते हैं तो एक बार सोचियेगा...
किसी बच्चे को 'फेल' कहकर उसी क्लास में रोकना एक कोमल मन के लिये क्या होता है ?
(मदन मोहन तिवारी)