Saturday, September 20, 2008

जो अफसर कहे...

न कुछ इन्तजारे- गज़ट कीजिए,
जो अफसर कहे बस वो झट कीजिए,
कहाँ का हलाल और कैसा हराम,
जो साहब खिलाएं, वो चट कीजिए,
बहुत शौक अँगरेज़ बनने का है,
तो चेहरे पे अपने गिलट कीजिए,
अज़ल आई अकबर, गया वक्ते- बहस,
अब इफ कीजिए और ना बट कीजिए......
अकबर इलाहाबादी

*कोफ्त से क्या फायदा ....

दिन तो जिन्नात की खिदमत में बसर होता है,

रात परियों की खुशामद में गुजर जाती है,

सेल्फ रिस्पेक्ट का वक्त आए कहाँ से अकबर,

देख तो गौर से दुनिया को,किधर जाती है।

घोट लिटरेचर को ,अपनी हिस्टरी को भूल जा,

शेखो-मस्जिद से तअल्लुक तर्क कर स्कूल जा,

चार दिन की जिंदगी है, कोफ्त से क्या फायदा,

खा डबल रोटी, क्लर्की कर,खुशी से फूल जा।

अकबर इलाहाबादी