Thursday, December 20, 2007

जाने वालों की याद आती है


चले गए अपनी कीमती यादें छोड़कर .....

वो जो कमर पर हाथ रखकर और अपने जूतों की नोक आगे से उठाकर उनको बडे स्टाइल से हम गुरु जनों को दिखा - दिखा कर हिलाते रहते थे,फलाना ढिमका बोलते रहते थे ।

बहुत एहसान हैं उनके, हम दिल्ली के गुरु लोगों पर। वो हमारा बहुत ध्यान रखते थे

हमेशा याद दिलाते रहते थे कि अगर वो हमारी ऐसी -तैसी नही करते तो हमारा निजीकरण हो जाता।

आपको खूब सारा प्यार और आशीर्वाद ....जोकमार जी....
जहाँ रहो आबाद रहो,
दिल्ली रहो या इलाहाबाद रहो...

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