Sunday, December 20, 2009

चरमरा गया है ढांचा


दिल्ली में स्कूलों की संख्या बढ़ाने पर ध्यान नहीं दिया जा रहा। रोज नए मॉल जरूर बन रहे हैं, फाईव स्टार हॉस्पिटल तथा बार बन रहे हैं मगर सरकारी स्कूलों को न तो जमीन दी जा रही है और ना ये मुद्दा सरकार की प्राथमिकता में ही आता है।आज हर जगह पूंजीवाद की अंधी दौड़ हो रही है जिसमे अपने संस्कारों को बचा के रखना ही हमारी पहली चुनौती है। जिस भी देश, समाज ने सोने चांदी और शराब को शिक्षा और संस्कारों से ऊपर समझा उसको नष्ट होना पड़ता है। सोने चांदी से लंका बनती है और वहां केवल आसुरी संस्कृति पैदा होती है। हमें सोचना होगा कि हमें स्कूल चाहिए या सिनेमा हॉल। यूँ इस दिल्ली का भी अजीब हाल है....दोस्तों.... कभी बहादुर शाह जफ़र ने भी बड़े दर्द के साथ कहा था....

दो गज जमीं भी ना मिली कू-ए-यार में.....
(कू-ए-यार = दोस्त की गली)
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