Thursday, December 17, 2009

हमारा प्रथम शोषक वर्ग प्रिंसिपलों का है

आज हम सरकारी स्कूलों के शिक्षकों को दुनिया कुछ भी कह ले मगर हम जिस तरह के घुटन भरे माहौल में काम करते हैं, वो हमारा दिल ही जानता है। हम सभी शिक्षक बुरे नहीं हैं, कामचोर नहीं हैं। हालांकि, हम सभी लोग दूध के धुले भी नहीं हैं। हम पर अत्यंत घिनौने आरोप भी लगते रहे हैं।


हमसे समाज उम्मीद तो बहुत कुछ करता है, मगर जब हमारा काम करना होता है तो सभी हमें दुखी करते है, हतोत्साहित करते हैं।
हमारा कोई भी काम हो, हर ऑफिस में अड़ंगा लगाना शुरू कर देंगे। क्लर्क बिरादरी से लेकर अफसर तक हमारा काम करने में घिन महसूस करते हैं?
इसका कारण भी स्पष्ट है, इनको हम घूस आसानी से नहीं देते।

हमारे अधिकतर प्रिंसिपल अच्छे हैं, बहुत ही अच्छे.....दिल से आदर देने के योग्य, मगर कुछ परले दर्जे के शरारती हैं और हमारा प्रथम शोषण कर्ता वर्ग ऐसे ही प्रिंसिपलों का है।

हमें इनको ठीक करना होगा, इनका दिमाग जमीन पर लाना होगा।

ये भ्रष्ट भी हैं और दिल्ली के स्कूलों में जिस तरह सर्व शिक्षा अभियान के पैसों को विद्यालय कल्याण समिति, बाला, टूर, युवा, कैल आदि के नाम पर इन लोगों ने लूटा है, उसकी सजा इनको मिलनी ही चाहिए। आज कम से कम चार लाख रूपये प्रतिवर्ष हर स्कूल को केवल इसलिए मिल रहे हैं कि ये पानी, बिजली, डेस्क, बाथरूम ठीक रख सकें।

इन पैसों को देना तुरंत बंद किया जाना चाहिए।ये केवल और केवल जनता के पैसों की डकैती है, लूट है।

ये महानुभाव बच्चों की स्कालरशिप तक के पैसे गटक जाते है। यूनिफार्म के पैसों को कैश देने के बदले स्वयं घटिया कपड़ों की शर्ट, पैंट बेचने और इसमें भी कमीशन मांगने में शर्म नहीं करते। पाकिस्तान के जरदारी साहब को 'मिस्टर टेन परसेंट' कहा जाता है। ये जनाब तो 'मिस्टर तीस परसेंट' हैं।

महिला के रूप में अगर कोई 'देवी जी' स्कूल के हेड की शोभा बढ़ा रही हों तो उनके साथ काम करने वाली महिला शिक्षिकाएं अधिकतर के लिये एक ही आदर्श शब्द का प्रयोग करती हैं.....पूरे आदर के साथ उनका नाम रखती हैं .... चुड़ैल.....
जरा सोचिये, आज सरकारी स्कूलों में काम करने वाली हमारी माताएं,बहनें, बहुएं और पत्नियाँ कितने मानसिक तनाव से गुजर रही हैं ?????

करोड़ों रूपये इनको सीधे देने के बाद भी इन स्कूलों की हालत क्या है?

जमीनी सच्चाई क्या है, नतीजा क्या है!!!

ये स्कूल ज्यों के त्यों हैं!!!!!

बार बार पंखों की मरम्मत के बिल लग जाते हैं, पंखे फिर भी नहीं चलते। पानी के नलके, पाइप बदल दिए जाते हैं, पीने का पानी नहीं होता। फिल्टर, वाटर कूलर, आर ओ लग जाते है, चलते नहीं। खिडकियों में कांच लगते नहीं, कागजों में टूट भी जाते है....हमने देखा है, जब दिल्ली की शीतलहरी में हमारी क्लास में बच्चे ठिठुरते हैं, अपने बैग खिडकियों पर टिका कर उसकी ओट में बचने की नाकाम कोशिश करते हैं।
इसे देखकर आँखों में आंसूं आ जाते हैं। अरे! कुछ तो शर्म करो जल्लादों!
खिडकियों के कांच, पंखों, ट्यूब लाईट, बल्ब, वायरिंग, स्विच, डेस्कों की मरम्मत, प्लास्टर, पाईप, नल, लाईब्रेरी की पुस्तकों, प्रयोगशाला के उपकरण के बिल बार बार लगते हैं, चूँकि बहाना होता है कि बच्चे तोड़ देते है।
उफ़!!! इस सिस्टम में दम घुटता है... पता नहीं किस जनम का पाप किया था कि सरकारी स्कूल में इन जोकों को खून पीते देखना पड़ता है।
ये प्रिंसिपल शिक्षकों की सर्विस बुक पूरी नहीं करते, कोई भी पेमेंट करनी हो, लटका के रखेंगे, कोई छुट्टी मंजूर करानी हो, इनके चक्कर काटो। परिक्रमा करते रहो। जब भी विभाग कोई रिपोर्ट मांगता है, आँख मूंदकर बार बार झूठी रिपोर्ट बना कर भेज देते हैं।

आगामी कॉमनवेल्थ गेम्स में अगर झूठे आंकड़ों का एक खेल भी रख दिया जाय तो ये स्वर्ण पदक ले मरेंगे।

ये हर उस आदेश के सर्कुलर छिपा कर रखने की कोशिश करते हैं, जिनसे हमारा भला होता हो।

हममें से ही कुछ 'भाई टाइप के लोग' इनके चमचे बन जाते हैं। घोटालों के बिल पर साइन करते हैं, मलाई की जूठन चाट कर भी गर्व महसूस करते हैं।

दोस्तों, हमें फिर भी इसी सिस्टम में जिन्दा रहना है। भाग कर कहाँ जाएँ।

"जंगल में साँप,
शहर में,
बसते हैं आदमी,
साँपों से बच के आए तो,
डसते हैं आदमी....
(फैज़)
दोस्तों, सूचना का अधिकार हमारा ब्रह्मास्त्र है। सरकारी स्कूलों के भ्रष्टाचार को हमें ही दूर करना होगा। इसका इलाज भी हम कर सकते है, चूँकि हम जानते हैं, इस सिस्टम की नस-नस को। आप सूचना के अधिकार पर खूब प्रयोग करें, अगर कोई प्रिंसिपल आपकी "आर टी आई" नहीं लेता तो तुरंत हमें बताएं।
कर सवाल पर सवाल.... हर सवाल का जवाब भी सवाल हो... यही हमारा मूल मंत्र है.....
आप हमारे साथ लगे रहिये।
आने वाले वक्त में इनमें से बहुत से लोग सही जगह पहुँच जायेंगे....तिहाड़ में।