Thursday, September 24, 2009

हमने लम्बी दूरियां नापी हैं ...

दोस्तों, आज शुचितापूर्ण तरीके से डेल्टा की दूसरी वर्षगांठ मनायी गयी। अपने छोटे से प्रयास से आपने अनायास ही पूरे शिक्षक समुदाय के आगे एक नायाब रास्ता खोल कर रख दिया है। आज आपके विचारों से प्रेरणा लेकर अन्य राज्यों में भी छोटे छोटे ग्रुप बनने लगे हैं जो सूचना के अधिकार 2005 द्वारा शिक्षक समुदाय की समस्याओं को हल कराने लगे हैं। दोस्तों, अब हमें उन सभी को साथ लेकर चलना होगा, उनको दिशा निर्देश देना होगा, उनको इस क़ानून की बारीकियों से फायदा उठाने के लिये प्रशिक्षित करना होगा, साथ ही उनके अनुभवों से ख़ुद भी सीखना होगा। दिल्ली में हम सबने अपने प्रयोगों को सफल होते देखा है। अब इसे अन्य राज्यों में भी सफल कराना है।

डेल्टा की स्थापना दो वर्ष पहले ऐसे समय हुई थी जब दिल्ली का शिक्षक समाज एक तानाशाह जोकरनुमा डाइरेक्टर (जोकमार) और एक बदजुबान शिक्षा सचिव (कुत्ते वाली मैडम) के अत्याचार और उत्पीड़न से टूट चुका था। वह वाकई एक अजीब दौर था जब रोज अनेक निर्दोष शिक्षकों को सस्पेंड किया जा रहा था। सेमिनार में अच्छे दिशा निर्देश कम मिलते थे, धमकियाँ ज्यादा मिलती थीं। हमारी तुलना कुत्तों से कर दी जाती थी और पूरे हॉल में किसी को बोलने नहीं दिया जाता था। उस कठिन दौर में जब लोग कहने लगे थे कि दिल्ली में संगठन मर चुका है, नेता बिक चुके हैं, आप सबने इस नए संगठन को बनाया और शिक्षक समुदाय का मनोबल ऊंचा किया, आप सभी सचमुच साधुवाद के पात्र हैं।
भले ही सूख गयी हैं ये पत्तियां, लेकिन
इन्हे दबाओ तो इनसे भी चीख आती है....

(त्रिमोहन)

अभी तो आपने केवल शुरुआत की है....

इसकी रंगत और निखरेगी खिजां में
ये ग़मों की शाख है, इसको हरा रख ....

(कुमार पाशी)

मित्रों, इस दिल्ली में स्वर्गीय करतार सिंह जून जैसे महान नेता पैदा हुए हैं जिनकी हुंकार से कभी दिल्ली सचिवालय के गलियारे गूंजते थे। आज भी आपको श्री भगत सिंह दहिया जैसे महान गुरुदेव का आर्शीवाद प्राप्त है, जिनपर कभी तत्कालीन 'मुख्यमंत्री' राधारमण को उनके चैंबर में ही पटक कर चार मुक्के मारने का 'आरोप' लगा था। लेकिन, उन्ही चार मुक्कों की बदौलत आज तक नगर निगम के प्राथमिक शिक्षकों की पदोन्नति टी जी टी के रूप में होती रही है। गुरुदेव एवं उनके साथियों पर नौ बरस तक केस चलता रहा था। हम दिल्ली के शिक्षक आज भी उनके एहसान से दबे पड़े है।

कामरेड दहिया को लाल सलाम...

आप सभी के नेतृत्व में जो हड़ताल हुई थी उसे बी बी सी ने विश्व की सफलतम हड़ताल कहा था।
भ्रष्टाचार को छिपाने के लिये अधिकारी बच्चों और शिक्षा का भला करने का ढोंग करते है। जो जितना बड़ा ढोंगी, उतनी बड़ी बड़ी बातें करता है। सच्चाई तो यह है कि गुरुओं को अपमानित करके और उनका मनोबल तोड़कर समाज और बच्चों का कभी भला नहीं किया जा सकता।
हम मानते हैं कि हम लोगों में भी कुछ लोग जरूर कामचोर से दिखते होंगे, लेकिन ज़रा उनका दर्द तो पूछकर देखो। उनकी आँखों के सामने जब शराबियों,पियक्कडों,चरित्रहीनों, ऑफिस के दलालों और चमचों को अवार्ड मिलेगा तो ईमानदार कितने दिनों तक काम करते रहेंगे!!!!
नतीजा होता है कि वे कुंठित हो जाते हैं। वे दुखी शिक्षक हैं, कामचोर नहीं।
दोस्तों , हमें तब भी इसी 'सिस्टम' में जीना होगा और पूरी निष्ठा के साथ काम करते रहना होगा। हमें उम्मीद है,एक दिन लोग जरूर हमारे विचारों की क़द्र करेंगे, हमें समझ सकेंगे।

हमें केवल ईमानदार और अच्छे शिक्षकों का ही साथ देना है, ताकि हमारे संगठन की इज्ज़त बची रहे। आप सभी इस बात का सबसे पहले ध्यान रखें।
हमारा सबसे बड़ा अवार्ड ईश्वर देगा।
आज हमें अच्छी तनख्वाह मिलती है, हमें जितना हो सके ईमानदारी से इतना तो करना ही चाहिए कि शाम की रोटी खाते समय शर्म ना महसूस हो.....

हमलोग चाहते हैं कि हमें लोग कहें......

हजार बार जमाना इस राह से गुजरा है
नई नई सी है कुछ तेरी रहगुजर फिर भी

('फिराक' गोरखपुरी)

और अंत में.......

चमक ऐसे नहीं आती है खुद्दारी के चेहरे पर
अना को हमने दो दो वक्त का फाका कराया है
मियां हम शेर हैं, शेरों की गुर्राहट नहीं जाती

लहजा नरम भी कर लें तो झुंझलाहट नहीं जाती
(मुनव्वर राणा)