Thursday, January 28, 2010

कैट में अगली तारीख अभी निश्चित नहीं है

ट्रांसपोर्ट एलाउएंस के केस की अगली तिथि अभी निश्चित नहीं है। पच्चीस जनवरी को कैट का आदेश इस मामले में यह हुआ है कि हमें केंद्र सरकार और मानव संसाधन मंत्रालय को पार्टी बनाते हुए उनके उस आदेश को स्टे करवाने के लिये अपने प्रार्थना पत्र को पुनः री-ड्राफ्ट करना होगा जिसके द्वारा ट्रांसपोर्ट एलाउएन्स बंद किया गया है। माननीय न्यायाधीश का सुझाव है कि हमारी प्रार्थना स्पष्ट नहीं है कि दिल्ली सरकार के आदेश को स्टे किया जाय या केंद्र सरकार के आदेश को। इसके लिये कैट से छः हफ्ते का समय मिला है। हमें मेमो ऑफ अमेंडमेंट या पुनः नई प्रार्थना लगानी पड़ सकती है। फ़िलहाल हमने कैट के आदेशानुसार सभी पक्षों को पुनः अपना 'प्रतिवेदन' भेज दिया है और जवाब का इंतज़ार कर रहे हैं.

दोस्तों, दिल्ली के हम सभी शिक्षकों का ट्रांसपोर्ट एलाउएन्स सन् 2001 से मानव संसाधन विकास मंत्रालय के पत्र संख्या F5-29/2001-UT-1 dated 28th December 2001 के कारण गर्मी की छुट्टियों (vacation) को अवकाश (leave) मानने के कारण बंद है। हमारा मुख्य विरोध इसी पत्र की गलत व्याख्या से है। लेकिन यह कितने शर्म की बात है कि तत्कालीन शिक्षक संघों ने इस तुगलकी फ़रमान को चुपचाप सह लिया। कम से कम कुछ धरने प्रदर्शन तो होने ही चाहिए थे। हमें अपने 'जिन्दा' रहने का सबूत भी देते रहना चाहिए। चुपचाप जमीन पर मुर्दों की तरह लेट जाने पर तो 'कौवे' भी चोंच मारने लगेंगे।
आप सभी दोस्त धन्यवाद के पात्र हैं कि इस नए संगठन डेल्टा को आप सभी ने तन, मन और धन, तीनों से सहयोग दिया है और हम आज आर्थिक रूप से आपकी लड़ाई को माननीय सुप्रीम कोर्ट तक लड़ने में सक्षम हैं। धन का रोना रोने वालों संगठनों के लिये आज डेल्टा एक उदाहरण है कि समाज के अच्छे काम के लिये लड़ने वालों को कभी पैसों की दिक्कत नहीं होती, उनके लिये भामाशाह की थैलियाँ खुल जाती हैं। आप सभी से अनुरोध है कि अपना नाम उस लिस्ट में जोड़ लें जो हम तैयार कर रहे हैं। एक वकालतनामा हमसे ले लें या डेल्टा की वेबसाइट से डाऊनलोड कर लें और साइन करके हमारे शाखा कार्यालय में जमा कर दें। आजकल कोर्ट में जिस तरह फैसले मिल रहे हैं,उससे हमें उम्मीद नहीं है कि इसके फैसले से पूरी दिल्ली के शिक्षकों को एक साथ फायदा हो जाएगा। हो सकता है कि शुरू में लिस्ट में शामिल लोगों को ही फायदा मिले।
'ये दुनिया है यहाँ कोई जगह ख़ाली नहीं रहती'
किसी के आने जाने से कभी कुछ कम नहीं होता...

(बशीर बद्र)