Wednesday, July 16, 2008

क्या भूलें क्या याद करें


आज, वो भी चले गए जिनसे उम्मीद बनी थी कि वे हमारा भला करेंगे। अपनी तरफ़ से उन्होंने पूरी कोशिश की लेकिन निचले लेवल पर काम हो, तब तो। वे आदेश निकालते रहे पर निचले पायदान पर बैठे नेगेटिव लोगों ने इनको खूब बदनाम कराया। वे संघर्ष करते रहे,लेकिन शिक्षा में करप्सन और कैंसर से हार गए। हजारों टीचर्स ने ट्रान्सफर के लिए अनुरोध किया था मगर केवल कुछ ही भाग्यशाली निकले जिन्होंने नीचे भी पूजा की,अर्चना की। उल्टे उनको गुमराह करने में लोग लगे रहे कि टीचर्स के साथ खूब सख्ती करो। पिछले दिनों 'चंगेज़ खान' जो 'उड़नदस्ता' बना गए थे उसने भी खूब कोशिश की कि उनकी अपनी "मस्ती की पाठशाला" चलती रहे। चमचागिरी से स्कूल में पढने-पढाने से जान बच जाती है और घूम-घूम कर दूसरों की गलतियां ढूँढने का,उनपर धौंस मारने का शौक भी पूरा हो जाता है। इनमें शामिल एक सज्जन को तो महिलाओं को ब्लैकमेल करने में कुछ ज्यादा ही मजा आता है। शायद उनको यह नहीं पता कि एक महिला शिक्षिका का हाथ पकड़ कर सीट से खड़ी कर देने के चलते दिल्ली में विश्व की सफलतम हड़ताल हुए थी और डायरेक्टर की गलती के चलते तत्कालीन प्रधान मंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी ने माफ़ी मांगी थी,तब हड़ताल समाप्त हुयी थी। फिर भी पिछले 'चंगेज़ खान' की तुलना में इनका दौर शराफत का दौर माना जायेगा। एकाध बड़ी गलती तो हो ही जाती है। किसी को सस्पेंड करो तो समाज बगावत करेगा ही। नहीं करना चाहिए था। पहले अच्छी तरह जांच करनी चाहिए थी। अधिकतर शिकायतें टीचर्स की आपसी राजनीति के कारण होती हैं। हमारी शुभ कामनाएँ आपके साथ हैं, जहाँ रहो आबाद रहो, दिल्ली रहो या इलाहाबाद रहो..............ईश्वर आपको और आपके परिवार को स्वस्थ रखे.....

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