Friday, July 23, 2010

देर आयद, दुरुस्त आयद....

एक बहुत अच्छा फैसला शिक्षा विभाग से आया है कि अब सरकारी और सहायता प्राप्त स्कूलों (एडेड) में आठवीं तक के बच्चों से कोई फीस (पी डब्ल्यू एफ) नहीं ली जायेगी। साथ ही, ली गयी फीस भी वापस कर दी जायेगी। यह निश्चित ही एक सही कदम है और फीस वापस करने के फैसले ने एक बार फिर 'डेल्टा' के शिक्षाविदों की साख जमा दी है। इस फैसले से लाखों गरीबों को 'महंगाई डायन' से कुछ तो राहत मिल ही जायेगी।

हम सबसे पहले माननीय शिक्षा मंत्री श्री अरविंदर सिंह लवली और उनकी टीम को धन्यवाद देना चाहेंगे कि उन्होंने हम 'डेल्टा' के शिक्षाविदों के सुझाव को महत्व दिया और व्यक्तिगत रूप से इस मामले में रुचि लेकर एक सकारात्मक कदम उठाया।

हमने विगत १३ अप्रैल को "दैनिक जागरण" जैसे हमारे मीडिया सहयोगी और 'पारदर्शिता' एन जी ओ की सहायता से इस मुद्दे को प्रमुखता से उठाया था कि १ अप्रैल को शिक्षा का अधिकार एक्ट लागू हो जाने के बाद कोई भी पैसा किसी भी रूप में कैसे वसूला जा सकता है ! 'पारदर्शिता' ने सैकड़ों बच्चों के हस्ताक्षर के साथ राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (NCPCR) को भी लिखा। इसके अलावा इस मामले को दिल्ली उच्च न्यायालय में भी ले जाया गया है।

दोस्तों, जरा सोचो तो कि अगर हम इसी तरह सही दिशा में काम करते रहे तो हम क्या कुछ नहीं कर सकते! आप सभी बधाई के पात्र हैं और इस उपलब्धि का श्रेय केवल आपकी सामूहिक प्रतिबद्धता को जाता है।
आपने पच्चीसों वर्ष पुरानी फीस व्यवस्था को एक झटके में बदल डाला है।

इस फैसले से लाखों गरीब बच्चों को फायदा होगा। साथ ही हम शिक्षकों को भी बार-बार रसीद काटने की क्लर्की से छुटकारा मिल जाएगा। अधिकारियों ने हमारा 'लास्ट वर्किंग डे' बंद करा दिया, हमने इस फीस का 'टंटा' ही ख़तम करा दिया......
इसे ही कहते हैं,
कभी गाड़ी पर नाव, कभी नाव पर गाड़ी....

फिर भी एक बात समझ नहीं आती कि पी टी ए (पैरेंट टीचर एसोसिएसन) के नाम पर पैसा क्यों वसूला जाएगा? इसका सर्कुलर साथ ही क्यों नहीं निकाला गया? अनेक प्रिंसिपल प्रतिभा स्कूलों में २५० रुपये तक 'वसूल' रहे हैं और बच्चों को रसीद तक नहीं दे रहे हैं। इन पैसों को अनाप सनाप तरीके से खर्च किया जा रहा है। एक 'महारानी' जो दक्षिणी दिल्ली के एक प्रतिभा विद्यालय की शोभा बढ़ा रही हैं अपने शिक्षकों से खुलेआम कहती हैं कि किसी भी तरीके से मुझे एक हज़ार रुपये रोज चाहिए।
तुम कहीं से भी बिल ले आओ।
बेचारे 'मास्टरजी' बिल ढूँढते डोल रहे हैं।

हमें डर है किसी दिन चूहे के बिल को ढूँढते-ढूँढते सांप के बिल में हाथ ना दे दें.........