
आपमें से कुछ लोगों का कहना है कि अब कैमरा हमारी क्लास में नहीं लगाया जा रहा है।ये गैलरी और अन्य जगहों पर लग रहा है। कुछ तो इसे डेल्टा की महान जीत बता रहे हैं। मगर हम इस बात से सहमत नहीं हैं। यह उनकी एक सोची समझी रण नीति है। हमें पिछले तीन बर्षों से परेशान करने वालों को अचानक हम पर दया क्यों आएगी! आख़िर स्टाफ रूम में कैमरा लगाने के पीछे की मानसिकता क्या साबित करती है?चुनाव सर पे खड़े हैं और इस समय में भी जो अधिकारी ऐसे काम करा रहे हैं, वे सरकार और गुरुजनों के शुभ चिन्तक तो नही ही कहे जा सकते।अच्छा होता, यदि अब भी रातों रात इनको हटाकर विनम्र विद्वानों को विभाग की जिम्मेदारी दी जाती। बुराई का इलाज केवल डंडे से नहीं होता, मीठे बोल तो अंगुलिमाल और रत्नाकर को भी संत बना देते हैं। आज जरूरत है कि गुरु जनों को इज्जत मिले और पिछले बरसों में जिन अधिकारियों ने हमारा अपमान किया है उनको सजा मिले। काम का बोझ कम हो, टेस्ट बंद हों,हर गुरु को अपने छात्रों को एसेसमेंट करके पास करने का हक़ हो।ट्रान्सफर पॉलिसी आसान बने।घर में पोस्टिंग हो....या स्कूल में ही घर हो।अब इस बार नवी क्लास में विज्ञान में ढेर सारे बच्चों को फ़ेल कर दिया गया है। आप को चिंता नहीं करनी है। लोगों के असंतोष को कंप्यूटर भगवान् और इसके देवताओं की तरफ़ मोड़ दीजिये और किनारे खड़े होकर खेल देखिये बस.....अब जनता के स्टेडियम में चुनाव-चुनाव का खेल शुरु होने ही वाला हैं।
दोस्तों, हमें अपनी "उसी योजना पर" चलते रहना है जो नवम्बर में बनी थी। कैमरे के मामले को न तो अपनी जीत मानें, ना अपनी हार। अपने उद्देश्य पर चलते रहें बस.....
दोस्तों, हमें अपनी "उसी योजना पर" चलते रहना है जो नवम्बर में बनी थी। कैमरे के मामले को न तो अपनी जीत मानें, ना अपनी हार। अपने उद्देश्य पर चलते रहें बस.....