इस चित्र को यहाँ दिखाने के पीछे केवल यही मंशा है कि उन सभी का ध्यान आकर्षित किया जाय जो किसी न किसी रूप में शिक्षा क्षेत्र से जुड़े हैं.... नीति निर्माता है।
नैतिक मूल्यों के विकास में स्कूल सिस्टम का अब कोई योगदान नहीं रह गया है। सदियों पुरानी भारतीय परिवार व्यवस्था, ब्रह्मचर्य पालन और नैतिक मूल्यों की बात करना अब मूर्खता हो गयी है, अपने गुरु, माता पिता, बड़े- बुजुर्गों को आदर देना, चर अचर जगत का सम्मान करना ... पिछड़ेपन का प्रतीक बन गया है।
यह चित्र हमें आगाह करता है कि हमारी शिक्षा पद्धति और स्कूल आज के बच्चों को किस दिशा में धकेल रहे हैं।
कितने दुःख की बात है कि हम पहले तो अपने बच्चों को 'एडवांस' और 'स्मार्ट' बनाने के लिये उनकी हरकतों को बढ़ावा देते हैं और जब यही नौजवान माता पिता और गुरुओं का अपमान करते हैं, हमारे हाथ से निकल जाते हैं तो हम इनको कोसने लगते हैं !!!
आज शिक्षा एक महंगा खेल बन कर रह गयी है, लाखों खर्च करने के बाद भी माता पिता बच्चों के कम या ज्यादा कमाने पर उतने दुखी नहीं हैं जितने उनके व्यवहार पर... यही कटु सत्य है।
क्या अब समय नहीं आ गया है कि हम अपने स्कूलों में होने वाले इन बचकानी हरकतों के बारे में कुछ सोचें जिन्हें हम बाल अधिकार और उनके माता पिता के धन बल के चलते ... कुछ कहना नहीं चाहते ??
केवल एक मशीन बन कर रह गए हैं ...आज के शिक्षक।
हम शिक्षा नहीं, ज्ञान नहीं, केवल गत्तों के डब्बों में , कार्टून्स में सूचनाएं भर रहे हैं।
रोक सको तो रोक लो ...यह तो बस एक झांकी है ....कल ऐसे छात्र हर जगह दिखेंगे और हम चुपचाप देखते रहेंगे...उसी ऑटो वाले की तरह जो जीवन यात्रा में केवल पेट के लिये इन यात्रियों को ढो रहा है।
हम क्लास में इनको कुछ नहीं बोलते... हमें झूठे मुकदमों में जेल जाना है क्या?
शिक्षा तंत्र को शिक्षाविदों के हवाले कीजिये, अपनी मिट्टी और मूल्यों को पहचानिए, नहीं तो कल केवल सर के बाल नोचने के सिवाय कुछ नहीं बचेगा।
ऐसा केवल पड़ोसी के बच्चों के साथ ही नहीं होगा, हमारे साथ भी होगा।
This picture is displayed here only to draw the attention of our policy makers.
The present education system have no interest in development of moral values in our students. Speaking in favour of the centuries old traditions of Indian family system, the 'Brahmacharya' and emphasis on development of moral values in students like showing respect to parents, elders, teachers, all living and non-living things of the world, is outdated now.