Please go deep in this news and find out the realities.
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http://khabar.ibnlive.in.com/news/43256/3/19?ref=nf
Delhi Educationists For Legal And Teaching Assistance (Regd.)
सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामयः, सर्वे भद्राणि पश्यन्तिः, मा कश्चिद् दुख्भागभ्वेद॥
प्रिय स्वजनों, आपने ही स्वजनों के हाथों सम्मानित होने में गौरव का अनुभव होता है, प्रसन्नता भी होती है। एक विष्णुगुप्त गौरवभूषित हो तो ना ही परिषद् न ही शिक्षक के लिये गौरव की बात हो सकती है। शिक्षक और परिषद् तो गौरवभूषित तब होगी जब यह राष्ट्र गौरवशाली होगा और यह राष्ट्र गौरवशाली तब होगा जब यह राष्ट्र अपने जीवन मूल्यों व परम्पराओं का निर्वाह करने में सफल और सक्षम होगा और यह राष्ट्र सफल और सक्षम तब होगा जब शिक्षक अपने उत्तरदायित्व का निर्वाह करने में सफल होगा और शिक्षक सफल तब कहा जाएगा जब वह प्रत्येक व्यक्ति में राष्ट्रीय चरित्र का निर्माण करने में सफल होगा। यदि व्यक्ति राष्ट्रभाव से शून्य है, राष्ट्रभाव से हीन है, अपनी राष्ट्रीयता के प्रति सजग नहीं है तो यह शिक्षक की असफलता है और हमारा अनुभव साक्षी है कि राष्ट्रीय चरित्र के अभाव में हमने अपने राष्ट्र को अपमानित होते देखा है। हमारा अनुभव है कि शस्त्र से पहले हम शास्त्र के अभाव से पराजित हुए हैं। हम शस्त्र और शास्त्र धारण करने वालों को राष्ट्रीयता का बोध नहीं करा पाए और व्यक्ति से पहले खंड-खंड हमारी राष्ट्रीयता हुई। शिक्षक इस राष्ट्र की राष्ट्रीयता व सामर्थ्य को जागृत करने में असफल रहा। यदि शिक्षक पराजय स्वीकार कर ले तो पराजय का वह भाव राष्ट्र के लिये घातक होगा। अतः वेद-वंदना के साथ साथ राष्ट्र-वंदना का स्वर भी दिशाओं में गूंजना आवश्यक है। आवश्यक है, व्यक्ति व व्यवस्था को आभास कराना कि यदि व्यक्ति की राष्ट्र की उपासना में आस्था नहीं रही तो उपासना के अन्य मार्ग भी संघर्ष-मुक्त नहीं रह पाएंगे। अतः व्यक्ति से व्यक्ति, व्यक्ति से समाज और समाज से राष्ट्र का एकीकरण आवश्यक है। अतः शीघ्र ही व्यक्ति, समाज और राष्ट्र को एक सूत्र में बांधना होगा और वह सूत्र राष्ट्रीयता ही हो सकती है। शिक्षक इस चुनौती को स्वीकार करे और शीघ्र ही राष्ट्र का नवनिर्माण करने के लिये सिद्ध हो। संभव है कि आपके मार्ग में बाधाएं आएँगी परन्तु शिक्षक को उनपर विजय पानी होगी और आवश्यकता पड़े तो शिक्षक शस्त्र उठाने में भी पीछे ना हटे। मैं स्वीकार करता हूँ शिक्षक का सामर्थ्य शास्त्र है परन्तु यदि मार्ग में शस्त्र बाधक हों और राष्ट्र-मार्ग के कंटक शस्त्र की ही भाषा समझते हों तो शिक्षक उन्हें अपने सामर्थ्य का परिचय अवश्य दे अन्यथा सामर्थ्यहीन शिक्षक अपने शास्त्रों की भी रक्षा नही कर पायेगा। संभव है कि इस राष्ट्र को एक सूत्र में बांधने के लिये शिक्षक को सत्ताओं से भी लड़ना पड़े परतु स्मरण रहे कि सत्ताओं से राष्ट्र महत्वपूर्ण है। राजनीतिक सत्ताओं के हितों से राष्ट्रीय हित महत्वपूर्ण है। अतः राष्ट्र की वेदी पर सत्ताओं की आहुति देनी पड़े तो भी शिक्षक संकोच ना करे। इतिहास साक्षी है, सत्ता और स्वार्थ की राजनीति ने इस राष्ट्र का अहित किया है। हमें अब सिर्फ इस राष्ट्र का विचार करना है। यदि शासन सहयोग दे तो ठीक है, अन्यथा शिक्षक अपने पूर्वजों के पुण्य और कीर्ति का स्मरण कर अपने उत्तरदायित्व का निर्वाह करने में सिद्ध हो, विजय निश्चित है। सप्त-सिन्धु की संस्कृति की विजय निश्चित है। विजय निश्चित है, इस राष्ट्र के जीवन मूल्यों की, विजय निश्चित है इस राष्ट्र की, आवश्यकता मात्र आवाहन की है......
The UPA Govt has implemented a historical Right To Education Act 2009 from 01/04/09 in the whole country.
This is another good legislation crafted, just like RTI Act 2005 issued by this Govt previously.
This move of Govt is admirable and we should welcome such nice RTE Act.
Yet, there are some provisions which to be rectified with mutual understandings but this is the time to welcome and not to oppose the welfare nature of this ACT.
We are thankful to the whole team of Ministers and Officers who formulated this RTE Act 2010.
The fees can't be collected in Govt schools under this act and its Section 3 (1) and (2) of RTE clearly states that
3.(1) Every child of the age of six to fourteen years shall have a right to free and compulsory education in a neighbourhood school till completion of elementary education.
(2) For the purpose of sub-section (1) , no child shall be liable to pay any kind of fee or charge or expenses which may prevent him or her from pursuing and completing the elementary education.
The Govt MUST reimburse the PWF and PTA fund to its schools. Charging money from students in any form by any name is COMPLETE violation of this RTE Act.
The Govt is looking alert for the welfare of its public but is it true that its functionaries chore in same tune, too?
Black sheeps in the system should be marked.
We urge Respected Minister to take steps immediately against the odd tunes.
Friends,
Today we have launched our campaign in favour of general public and it will be intensified with support of some NGO in coming future.
We are thankful to all our friends in Media for supporting us and we convey our heartiest gratitude to Dainik Jagran for publishing a nice report on this issue on today 13/04/2010.
Please click this link to read Internet edition of the news
http://in.jagran.yahoo.com/news/local/delhi/4_3_6331754.html
(Please double-click over the image of news paper to read in large fonts)
As promised, I am enclosing a copy of the minutes of the meeting and a list of persons who attended the meeting along with their contact details (enclosed). A googlegroup has been created with the name Section4monitoring (http://groups.google.co.in/group/section4monitoring) and all persons who gave their e-mail addresses during the meeting will be invited to this group in a few days. The googlegroup is public and persons who could not attend the meeting are welcome to join it.
I am of the opinion that there is a need to prioritise the information which needs to be disclosed under Section 4 based on matters which are important to citizens and the disclosure has to be made in a citizen friendly format. I am hoping that civil society groups and individuals can assist the Commission in this endeavour by suggesting what kind of information should be disclosed by public authorities on a priority basis and preferably also suggest the format in which the information would be most useful for citizens. During the meeting I have stressed on the fact that the Commission needs the help of civil society groups to monitor the compliance of its orders with regard to disclosure of information in accordance with Section 4 of the RTI Act and to ensure that the information. E-mails can be sent to rtimonitoring@gmail.com in this regard.
Furthermore, if there are persons interested in volunteering to monitor websites of different Public Authorities in the context of mandatory disclosures which should be made under Section 4 of the RTI Act, such persons can get in touch with the Commission at rtimonitoring@gmail.com. For noncompliance of the Commission’s Section 4 orders do file a Complaint stating what information has not been disclosed by the Public Authority.
After reviewing the suggestions and observations that were made during the meeting, the Commission has decided to look into the following areas in the coming week and I hope to address the remaining issues soon after:
I hope to hold these meetings on a regular basis and I look forward to working together with civil society groups and individuals.
Please visit RTI page on http://www.delta.org.in/
or clik the link below to read the full message :-